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*फसल बीमा कम्पनी से सांठगांठ में भूपेश सरकार ने रमण सरकार को पीछे छोड़ा-डॉ. अमित मिश्रा*

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*फसल बीमा कम्पनी से सांठगांठ में भूपेश सरकार ने रमण सरकार को पीछे छोड़ा-डॉ. अमित मिश्रा

*बेमौसम बारिश से क्षतिग्रस्त फसलों का तत्काल मुआवजा दे सरकार*

*प्रदेश के लाखों किसानों को पिछली बीमा राशि का भुगतान अब तक नहीं*

*सर्वे प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं*

प्रसिद्ध समाजसेवी एवं आम आदमी पार्टी के लोकप्रिय नेता डॉ. अमित मिश्रा ने विगत दिनों होने वाली बेमौसम बारिश, आँधी और ओलावृष्टि से प्रदेश के किसानों की विभिन्न फसलों को होने वाली हानि को लेकर चिंता व्यक्त की।
उन्होंने कहा कि पिछले कोरोना काल में देश की अर्थव्यवस्था को चौपट होने से बचाने वाला किसान आज महामारी की दूसरी लहर के दौरान खुद संकट में फंसा हुआ है। सन 2020 के लॉक डाउन की वजह से जीवनोपयोगी चीजों में बढ़ी मँहगाई का दंश झेल रहे किसानों के लिए बेमौसम बारिश से फसल खराब होना, खाद की मूल्यवृद्धि दुबले पर तीन आषाढ़ साबित हो रही है।केंद्र सरकार की किसान सम्मान निधि और राज्य सरकार की न्याय योजना की राशि भी किसानों के इस संकट को दूर करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
इसलिए आम आदमी पार्टी प्रदेश सरकार से मांग करती है कि प्राकृतिक आपदा से क्षतिग्रस्त रबी फसलों की मुआवजा राशि का भुगतान जल्द से जल्द किया जाए।


इस विषय पर उन्होंने आगे कहा कि 15सालों तक जब प्रदेश में भाजपा की रमण सरकार थी तब काँग्रेस ने फसल बीमा योजना पर सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ा पर जब वह सरकार में है तो खुद कटघरे में खड़ी है।प्रदेश में लाखों छोटे किसान ऐसे हैं जिन्हें पिछली फसल के बीमा राशि का भुगतान अभी तक नहीं हुआ है।बड़े,शिक्षित और रसूखदार किसानों को भुगतान हो जाता है पर छोटे, अल्पशिक्षित किसान बीमा कंपनी के दफ्तर के चक्कर लगाते रह जाते हैं अतः सरकार इसका संज्ञान ले और वंचित किसानों को पिछली बीमा राशि का भुगतान तत्काल करवाए।
डॉ. मिश्रा ने फसल की क्षति के आंकलन के लिए सर्वे प्रक्रिया पर भी गंभीर आरोप सरकार पर लगाए।कहा कि भाजपा सरकार के समय क्षति के आँकलन के लिए राजस्व ब्लॉक को ईकाई माना गया था भूपेश सरकार ने दिखावे के लिए पंचायत को ईकाई माना है पर फसल बीमा राशि को बीमा कम्पनी से सांठगांठ कर हड़पने का खेल तो सर्वे के दौरान ही हो जाता है।बीमा कंपनी के कर्मचारी,पंचायत प्रतिनिधि और पटवारी मिलजुलकर सर्वे कर भी लेते हैं और किसी को पता ही नहीं चलता और बीमा कंपनी के फायदे के हिसाब से सर्वे रिपोर्ट तैयार हो जाती है। डॉ. मिश्रा ने कहा है कि अब अन्नदाता किसान के साथ यह घिनौना खेल बंद होना चाहिए।

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